Tuesday, March 3, 2015

नकारात्मकता का वाई फाई कनेक्शन

जब से दुनिया बनी है तबसे दुनिया में तमाम बीमारियों ने पाँव पसारा. दुनिया ज़हान के लोगों ने मिलकर उनका इलाज खोजा और दुनिया को रहने लायक बनाया. मगर एक छुआछूत जैसी बीमारी का इलाज शायद आजतक नहीं मिल पाया...और उस नासपीटी बीमारी का नाम है, नकारात्मकता. बीमारी इसलिए कहना पड़ रहा है क्यूंकि इससे किसी का भला होते तो नहीं देखा आजतक.
कभी मिला है ऐसा मरीज आपको?
ऐसे लोगों को मैं कहता हूँ HED यानी Human Energy Drainers.
चाल में सुस्ती, बात में पस्ती और शकल पर मुर्दे के राख सी लपेट कर फिरने वाले लोगो ने अपनी जली किस्मत के चलते ये फ़ितरत पैदायशी पाई होती है या किसी और कलाकार से सीख कर पॉलिश की होती है इस बार में विद्वानों में मतभेद हो सकता है मगर इस बात में कत्तई कोई दो राय नहीं हो सकती है कि इसके मरीज को फ़ौरन इलाज की सख्त ज़रूरत हमेशा होती है.
दुनिया भर की मैनेजमेंट यूनिवर्सिटीज ये बताने में लगी रहती हैं कि रिसोर्सेज कैसे मैनेज करें, प्रॉफिट कैसे बढ़ाएं, लास कैसे कम करें मगर टॉप के मास्साब लोग भी ये बताने से चूक जाते हैं कि नकारात्मकता के मशाल धावकों से कैसे बचें?
मेरी निगाह में सबसे उम्दा, सबसे कारगर तरीका है कि दूर रहें.
गज फुट से नापकर दूर होने की जगह ऐसा रेडियस चुने जिसके अन्दर ऐसे लोगो की बात अन्दर घुसने से पहले ही दम तोड़ दिया करे.
इनकी बातें कानो में पड़ भी जाएँ तो ऐसे इग्नोर करें जैसे एग्जाम में आखिरी मिनट में घनघोर रफ़्तार से शीट भरने में लगा विद्यार्थी कक्ष निरीक्षक की जल्दी आंसर शीट जमा करने की घोषणा पर कान नहीं देता.
क्यूंकि एक बार इनकी बातों पर ध्यान दे दिया तो जनम भर का रोग लगा लिया समझो.
ऐसे लोग जब आधा भरा गिलास देखते हैं तो ये सोचने से नहीं चूकते कि गिलास आधा ख़ाली तो जो है वो हइये है कहीं टूट ना जाये और बाकी पानी भी चला जाये. ऐसे लोग जब किसी बीमार को देखने जाते है तो सांत्वना देते वक़्त कह देते है कि “लकी आदमी हो भाया, दस में से नौ मर जाते है तुम्हारी वाली बीमारी से...ख़ुशी की बात है कि नौ मर चुके हैं”. भविष्य की तरफ़ पीठ करके चलने वाले, बीते वक़्त की ब्लैक एंड वाइट तस्वीरें बगल में दबाये चलने वाले ये लोग आने वाले वक़्त की आशा नहीं देखते, बीते दौर की रंगीनियों का रोना रोते रहते हैं.
लेकिन लाख रुपये का सवाल ये है कि लोग ऐसे होते क्यूँ है?
शायद इसलिए की उनकी अपनी जिंदगी में उन्होने उम्र भर से ऐसे ही देखा है जीवन को, ऐसे ही जिया है जिंदगी को...चूँकि शायद खुद कुछ ना कर पाए अपनी जिंदगी में इसलिए आदत बना ली हर किसी को चेताने कि जिंदगी की राह में रोड़े बहुत हैं, बैरियर बहुत हैं.
ऐसा आदमी अपनी कमज़ोरी को ही अपनी ढाल बनाये फिरता है.
नकारात्मकता का चलता फिरता वाई फाई टावर बने फिरते हैं. बिना पैसे के अपनी चिंताए दूसरों के दिलो दिमाग में डाउनलोड करवा देते हैं.
प्रभु बचाएं.
शायद उन्हें खुद कभी ऐसे किसी अपने का, दोस्त का सहारा ना मिला जो उन्हें उनकी पस्ती के आलम से बाहर निकाल पता इसलिए उन्होने दूसरों के भी उम्मीदों की सीढियों के डंडे तोड़ने शुरू कर दिए.
ऐसे लोग जहाँ भी मिलें, नज़दीकी मानसिक चिकित्सालय का पता उन्हे ज़रूर बताना चाहिए.

...सीरियसली मैन.

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