Thursday, November 20, 2014

अभिशप्त

आज एनडीटीवी पर रवीश की रिपोर्ट देख रहा था...
पांच मंजिली ईमारत, विशाल अहाता, एसी कमरे, पर्सनल लिफ्ट, खुबसूरत स्वीमिंग पूल, थ्री स्टार होटल जैसा बाथरूम...एंड व्हाट नॉट? जो रामपाल साहब खुद को मरणासन्न/बीमार बता रहे थे, कोर्ट में पेश नहीं हो सकते थे...वो खुद अपने पैरों पर खड़े होकर पत्रकारों को इंटरव्यू दे रहे थे. और, दिखे ऐसे भी लोग जो अभी भी अपनी अंध-आस्था पर अडिग हैं. रामपाल बाबा की तस्वीरों के सामने साष्टांग दंडवत ये लोग गुस्से के नहीं सहानभूति और दया के पात्र लगे. ऐसा भी नहीं है की ऐसी अंध-आस्था सिर्फ रामपाल बाबा के लिए है. ऐसे तमाम लोग हैं हिन्दुस्तान में जो अपने को गुरु घोषित कर देते हैं, यहाँ तक कि मोहल्ला लेवल पर भी. मेरे एक स्टूडेंट का परिवार, जिनके मुखिया कंस्ट्रक्शन मटेरियल सप्लाई का काम करते थे, सालों से ऐसी ही एक लोकल टाइप माता जी की शिष्यता निभा रहे थे. भक्ति का चरम ये था उनक जूठा अचार तक प्रसाद स्वरुप ग्रहण होता था. कई सालों तक उनके कहने पर उनके आश्रम के लिए कंस्ट्रक्शन मटेरियल ऐसे ही भेज देने वाले परिवार ने बार बार उनकीं डिमांडिंग आज्ञा से खिन्न होकर अंततः उनको फाइनल नमस्ते बोल दिया.
अपने आप को गुरु की पोस्ट पर अपॉइंट करने के कौन सी क्वालिफिकेशन की ज़रूरत होती है, आज तक मुझे पता नहीं लग पाया. शिष्य बनने के लिए ‘पात्रता’ सिद्ध करनी पड़ती है...एकलव्य और कर्ण को तो फिर भी शिष्यता नहीं मिली थी मगर जैसे शिष्यता की पात्रता सिद्ध करनी पड़ती है वैसे ही गुरु की पात्रता भी तो सिद्ध होनी चाहिए.
हिन्दुस्तान अभिशप्त है, धर्म के नाम पर मूर्ख बनाने वाले लोगों की वजह से. और उन लोगों की वजह से जो धर्म का मर्म समझे बिना ही ऐसे लोगों की जयजयकार में लगे रहते हैं. चमत्कार को नमस्कार करने वाले देश में आस्था को तर्क की कसौटी पर कसना बहुत खतरनाक काम है. आप उनकी आस्था पर तर्क करने की कोशिश करेंगे तो मुहं की खायेंगें, चुप कराये जायेंगे, पीटे भी जा सकते है...इत्यादि, समझे?.
ऐसा ग़रीब, अनपढ़, अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी में तमाम झमेलों से जूझती हुई जनता ही करती हो, ऐसा नहीं है. सूट –टाई, चमकते बूट पहनने वाली जमात भी कभी कभी ऐसे ऐसे उदाहरण, तर्क देते हैं कि चक्कर आ जाना आम बात है.
छोटी से जिन्दगी में जितना भी कबीर को, बुद्ध को, कंफ़िउशियस, सुकरात वैगरह को पढ़ सका, कहीं भी ऐसा नहीं लगा जहाँ ये व्यक्तित्व धर्मपालन की जगह व्यक्ति आराधना को महत्त्व देते हों. ईमानदारी से अपना काम करने की जगह, ढोल मंजीरा लेकर जयजयकार को प्राथमिकता देते हों.  
खैर, ऐसी बातें हर धर्म, मजहब, संप्रदाय, पंथ में मिल ही जाती है. अगर यकीन हो की बनाने वाले ने इंसान को बनाने के साथ साथ बुद्धि भी इंस्टाल कर करके ही इस धरती पर भेजा है, और बुद्धि का काम ‘सोचना-समझना’ भी है तो उसका उसका इस्तेमाल भी करना चाहिए.

जीवन में गुरु ज़रूर चुनिए...चुनिए. और, अपनी शिष्यता सिद्ध करने के साथ साथ उनकी गुरुताई की सिद्धता का भी ध्यान करना चाहिए.